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भारत में विकसित देश के मुकाबले हेल्थकेयर सेवाएं कमजोर : डॉ डीके गुप्ता

नोएडा।भारत में कुल सरकारी खर्च में हेल्थकेयर पर खर्च हिस्सा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का बहुत मामूली सिर्फ 2.5 फीसद है, जो दुनिया भर के ज्यादातर आर्थिक रूप से विकसित देशों के मुकाबले में बेहद कम है। इसलिए इसे पांच प्रतिशत किया जाने की जरूरत है।

यह बातें फेलिक्स हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ डीके गुप्ता ने कहीं। आगामी बजट 2024-25 को लेकर उन्होंने कहा की है कि कोरोना महामारी ने गांवों और शहरी इलाकों के साथ-साथ सरकारी और निजी हेल्थकेयर सिस्टम में हेल्थकेयर की क्वालिटी के बड़े फर्क को उजागर किया था। इसलिए जरूरी ही देश के सरकारी हेल्थकेयर सिस्टम के सामने आने वाली चुनौतियों को बेहतर करने के लिए जरूरी उपाय बनाए।

हेल्थकेयर क्षेत्र में भारत के नाम कई उपलब्धियां हैं। यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के लिए सरकार को नए उपाय करने चाहिए, ताकि जेब से होने वाला खर्च कम हो सके। एक मजबूत हेल्थ ईकोसिस्टम बनाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर, एचआर, सर्विस डिलीवरी मेकैनिज्म, टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में निवेश करना महत्वपूर्ण है।

बजट में आवंटित पूरी राशि खर्च होनी चाहिए और उसका अधिकतम हिस्सा प्राइमरी केयर स्तर पर खर्च होना चाहिए। भारत में विकसित देश के मुकाबले हेल्थकेयर सेवाएं कमजोर हैं। इसे बेहतर बनाने के लिए सरकारी और निजी, दोनों निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है।

नए हेल्थकेयर संस्थानों को कर्ज पर ब्याज और टैक्स में छूट मिलनी चाहिए
मोबाइल फोन की तरह मेडिकल डिवाइस की मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए सरकार को बेसिक कस्टम ड्यूटी कम से कम करनी चाहिए, जो अभी ज्यादा है। सही नीति अपनाई जाए तो कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स की तरह मेडिकल डिवाइस के क्षेत्र में भी आयात पर निर्भरता से कम हो सकती है जो अभी ज्यादा है।

सभी डिवाइस पर कम से कम जीएसटी कर लगना चाहिए। चिकित्सा, कुशल और नर्सिंग शिक्षा को बेहतर बनाया जाए। आवश्यक दवाओं को जीएसटी मुक्त किया जाए। सीटी, एमआरआई और कैथलैब जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य उपकरणों को आयात शुल्क मुक्त किया जाए। टियर 2 और टियर 3 शहरों में अस्पताल क्षेत्र में सुधार को बढ़ावा दिया जाए। सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा के लिए पीपीपी मॉडल को अपनाया जाए। निजी बीमा और दवाइयों के मामले में उदारीकरण किया जाए।

एनएबीएच, एनएबीएल और जेसीआई मान्यता को बढ़ावा दिया जाए। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया की लगभग 60 प्रतिशत वैक्सीन भारत में बनती हैं। ग्लोबल हेल्थ प्रोग्राम में वैक्सीन के लिए यूनिसेफ काफी हद तक भारत पर निर्भर है। देश में रिकॉर्ड 220 करोड़ से ज्यादा कोविड-19 वैक्सीन लगाई जा चुकी हैं। भारत जेनरिक दवाओं का भी सबसे बड़ा निर्यातक है, लेकिन स्वास्थ्य क्षेत्र में उपलब्धियों की फेहरिस्त बहुत लंबी नहीं है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार भारत में एक हजार लोगों पर अस्पतालों में सिर्फ 0.5 बेड उपलब्ध हैं। यहां 143 करोड़ लोगों के लिए सिर्फ 1.25 लाख आईसीयू बेड हैं। डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या भी वैश्विक मानकों से बहुत कम है। इस लिहाज से अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। इसलिए जरूरी है कि स्वास्थ्य का बजट बढ़ाया जाए।

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