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बदलती जीवनशैली से युवाओं में बढ़ रहा कैंसर : डॉ रजत बजाज

नोएडा।कैंसर के बारे में यह आम धारणा है कि यह बड़ी उम्र के लोगों को ही अपना शिकार बनाता है। लेकिन अब ऐसा नहीं है, देखा गया है कि कैंसर उम्र के मामले में कोई फर्क नहीं करता। JAMA नेटवर्क में पब्लिश हुई एक स्टडी के मुताबिक, हाल के वर्षों में युवा वयस्कों में भी कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। यहां तक कि 50 साल से कम उम्र के लोगों में कैंसर की दर अभूतपूर्व रूप से सबसे ज्यादा दर्ज की गई है।

यह काफी चिंता का विषय है और इस बारे में लोगों को जागरूक बनाने के मकसद से, फोर्टिस नोएडा ने आज अस्पताल में एक प्रेस सम्मेलन का आयोजन किया। इस दौरान, डॉक्टरों ने उन युवा मरीजों की स्टोरीज़ को मीडिया के साथ शेयर किया जिन्होंने कैंसर से डटकर मुकाबला किया। समय पर डायग्नॉसिस और सही उपचार मिलने से ये मरीज कैंसर को हराने के बाद अब न सिर्फ अपनी हैल्थ को वापस पा चुके हैं बल्कि हैल्दी लाइफ भी बिता रहे हैं।

 

इन मामले का ब्योरा देते हुए, डॉ शुभम गर्ग, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में, युवाओं में कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। महिलाओं में ब्रैस्ट और एंडोमीट्रियल कैंसर के मामले बढ़े हैं। उधर, पुरुषेां में गर्दन और सिर के कैंसर तथा लंग कैंसर के मामले ज्यादा देखे गए हैं। यह सही है कि समय पर डायग्नॉसिस होना जरूरी है। कैंसर के मामलों में मरीजों के इलाज के परिणाम काफी हद तक इस बात पर निर्भर करते हैं कि उनका डायग्नॉसिस किस स्टेज में हुआ था। शुरुआती स्टेज में सही डायग्नॉसिस से मरीज के चने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।

अक्सर यह देखा गया है कि मरीज बायप्सी और कीमोथेरेपी करवाने से डरते हैं या बचना चाहते हैं और ऐसे में उनके डायग्नॉसिस में देरी होती है जिसकी वजह से अब बाद में डायग्नॉसिस होता है तो रोग एडवांस स्टेज में पहुंच चुका होता है। हमें यह समझना होगा कि कैंसर के उपचार का मरीज को पूरा फायदा तभी मिल सकता है जबकि डायग्नॉसिस शुरुआती स्टेज में हो जाए। इसलिए, नियमित रूप से स्क्रीनिंग करवाते रहें और हैल्थ-चेक से न बचें संपर्क करने में भी देरी नहीं करनी चाहिए।”

डॉ रजत बजाज, डायरेक्टर, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल, नोएडा ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में युवाओं में कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसका प्रमुख कारण उनकी बदलती जीवनशैली और कुछ हद तक आनुवांशिकी (जेनेटिक्स) भी है। युवाओं में धूम्रपान और अल्कोहल की लत पहले से कहीं ज्यादा बढ़ी है, साथ ही उनके भोजन में सोडियम की मात्रा अधिक होती है

जबकि फाइबर और फल कम होने लगे हैं। इनके अलावा, कई अन्य रिस्क फैक्टर्स भी जुड़े हैं, जैसे मोटापा, निष्क्रिय जीवनशैली, मधुमेह और पर्यावरण प्रदूषण तथा रेड मीट और अधिक शुगरयुक्त वेस्टर्न डायट्स का बढ़ता चलन, तथा नींद की कमी। हम पिछले दो-तीन वर्षों से फोर्टिस हॉस्पीटल में हम कई तरह के कैंसर रोगों का उपचार इम्यूनोथेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी से कर रहे हैं। हम कई तरह के कैंसर, जैसे लंग कैंसर, किडनी कैंसर, हेपेटोसैलुलर, ब्रैस्ट कैंसर आदि के इलाज के लिए इम्यूनोथेरेपी से करने की सलाह कर रहे हैं।”

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