नाेएडा।तबियत खराब होने पर यदि आपने जिला अस्पताल या अन्य किसी सरकारी अस्पताल की लैब में जांच कराई है तो सावधान हो जाइए। सरकारी लैब की जांच के आधार पर आपका गलत इलाज हो सकता है और ऐसे में स्वास्थ्य सुधरने की बजाय और ज्यादा बिगड़ सकता हैं। यह हम नहीं कह रहे बल्कि, सरकारी अस्पतालों की लैब से निकले परिणाम बता रहे हैं।
ताजा मामला किसी आम आदमी का नही ब्लकि
नोएडा के सेक्टर-39 स्थित जिला अस्पताल में तैनात एक डिप्टी सीएमओ के बेटे का है।डिप्टी सीएमओ ने अपने बेटे की तबीयत खराब होने पर जिला अस्पताल में जांच करवायी तो जांच में किडनी फेल होने की रिपोर्ट आयी।लेकिन जब डिप्टी सीएमओ ने प्राइवेट हॉस्पिटल में बेटे की जांच कराई तो उसकी रिपोर्ट नॉर्मल आई।
अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब डिप्टी सीएमओ के बेटे के साथ ऐसा हो सकता है या यू कहे कि उनको गलत
रिपोर्ट मिल सकती है तो आम आदमी के साथ क्या क्या हो सकता है।बताते चले कि डिप्टी सीएमओ ने एक सप्ताह पूर्व अस्पताल में जाकर अपने बेटे की विभिन्न जांच कराई थी।जांच रिपोर्ट में उसकी किडनी फेल बता दी।इसके अलावा उसका यूवी और कोलेस्ट्राल भी इतना बढ़ा हुआ बताया कि मरीज को सीधे भर्ती हाेना पड़े।वही जब डिप्टी सीएमओ ने दूसरे दिन एक निजी लैबाेरेट्री में जाकर टेस्ट कराया तो सभी टेस्ट सामान्य आए।
सीएमएस डा. रेनू अग्रवाल का कहना है कि मामले सामने आने के बाद पैथलैब के प्रभारी डा. एचएम लवानिया को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था, लेकिन अबतक जवाब नहीं मिला है। पैथलैब प्रभारी डा. एचएम लवानिया का कहना है कि नमूना देने के दौरान बार कोड गलत लगाने के कारण जांच रिपोर्ट गलत है, जिस व्यक्ति की जांच रिपोर्ट प्राप्त हुई है उसकी किडनी फेल हैं उसकी डायलिसिस भी चल रही है। कई बार सैंपल लेने के दौरान जल्दबाजी में टेक्नीशियन की गलती से ऐसा हो जाता है।