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Greater noida :कुंभकरण की नींद से जागा प्राधिकरण,अवैध निर्माण पर हुयी कार्रवाई

Noida और Greater noida प्राधिकरण

Greater noida वरिष्ट सामाजिक कार्यकर्त्ता ओमवी आर्य ऐडवोकेट ने प्राधिकरण की कार्यवाही पर आरोप लगाते हुए बताया कि नोएडा प्राधिकरण और Greater noida प्राधिकरण आखिरकार कुंभकरण की नींद से जागता हुआ दिखाई दे रहा है,

लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जागरण बहुत देर से नहीं हुआ? वर्षों से जिले में प्राधिकरण की अधिसूचित भूमि पर अवैध कॉलोनियों का जो सुनियोजित खेल चल रहा था, वह किसी से छिपा नहीं था। इसके बावजूद प्राधिकरण के अधिकारी आंखें मूंदे बैठे रहे और अब जब हालात बेकाबू हो चुके हैं,तब 209 कॉलोनाइजर्स पर कार्रवाई का ढोल पीटा जा रहा है।स्थानीय लोगों का आरोप है कि बार-बार शिकायतें देने, लिखित आवेदन देने और मौके पर अवैध निर्माण दिखाने के बावजूद प्राधिकरण के अधिकारी क्षेत्र में झांकने तक नहीं पहुंचे।जिन इलाकों में अवैध निर्माण धड़ल्ले से हुआ, वहां प्राधिकरण की भूमिका केवल वसूली तंत्र बनकर रह गई। प्राधिकरण अधिकारी से लेकर मैदानी कर्मचारियों तक ने कॉलोनाइजर्स के साथ मिलकर अवैध प्लॉटिंग को खुला संरक्षण दिया और नियमों को ताक पर रखकर निजी कमाई को प्राथमिकता दी।

स्थिति इतनी गंभीर है कि बहुत ही सुनियोजित तरीके से समतल कलर लैब की कंपनी के आसपास और सहारा की सैकड़ों बीघा जमीन पर, प्राधिकरण के क्षेत्र में खुलेआम अवैध निर्माण चल रहा है, लेकिन प्राधिकरण अब भी आंख बंद कर बैठा है। क्या यह सब बिना विभागीय जानकारी के संभव है? या फिर चुप्पी भी इस पूरे खेल का हिस्सा है?

सबसे बड़ा शिकार गरीब और निम्न आय वर्ग का आम नागरिक बना है। प्राधिकरण आज भी छोटे प्लॉट और निम्न आय वर्ग के लिए गिनी-चुनी योजनाएं ही उपलब्ध कराता है। मजबूरी में लोग कॉलोनाइजर्स के झांसे में आकर अपनी जीवनभर की पूंजी झोंक देते हैं और बाद में कानूनी पचड़ों में फंस जाते हैं। यदि प्राधिकरण समय रहते व्यवस्थित रूप से छोटे प्लॉट आमजन के लिए उपलब्ध कराता, तो अवैध कॉलोनियों को पनपने का अवसर ही नहीं मिलता।अब जब अवैध कॉलोनियां बस चुकी हैं, सड़कें बन चुकी हैं और लोग वहां रह रहे हैं, तब बुलडोजर और नोटिस की राजनीति आम जनता के साथ सीधा अन्याय प्रतीत होती है। जिले में हुए हर अवैध निर्माण की नैतिक, प्रशासनिक और कानूनी जिम्मेदारी आखिर किसकी है? क्या सिर्फ कॉलोनाइजर ही दोषी हैं, या वे अधिकारी और कर्मचारी भी बराबर के जिम्मेदार हैं जिन्होंने वर्षों तक आंखें मूंदे रखीं?

सबसे अहम सवाल यह है कि प्राधिकरण ने अब तक अपने कितने अधिकारियों, पटवारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है? कितनों को निलंबित किया गया, कितनों पर एफआईआर दर्ज हुई और कितनों की संपत्ति की जांच हुई? यदि जवाब शून्य है, तो यह कार्रवाई केवल दिखावा ही मानी जाएगी।कुंभकरण की नींद से जागा यह प्राधिकरण अगर वास्तव में अवैध निर्माण पर लगाम कसना चाहता है, तो उसे पहले अपने भीतर झांकना होगा।

दोषी कर्मचारियों पर कठोर कार्रवाई, पारदर्शी योजनाएं और आमजन के लिए सुलभ छोटे प्लॉट उपलब्ध कराना ही इस समस्या का स्थायी समाधान है। अन्यथा यह जागरण भी कुछ समय बाद फिर गहरी नींद में बदल जाएगा और अवैध निर्माण का यह खेल दोबारा पूरे शबाब पर पहुंच जाएगा।

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