नोएडा।फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा के डॉक्टरों ने मात्र 25 हफ्ते में जन्मे और 750 ग्राम वज़न के प्रीमैच्योर शिशु को बचाने में सफलता प्राप्त की है। इस नवजात की डिलीवरी भी काफी जटिल साबित हुई थी और एम्नियोटिक फ्लूड का समय से पहले ही रिसाव शुरू हो गया था और साथ ही, उसे इंफेक्शन भी था। फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा की डॉ आराधना सिंह, एडिशनल डायरेक्टर, ऑब्सटैट्रिक्स एवं गाइनीकोलॉजी, तथा डॉ संजीव छेत्री, सीनियर कंसल्टैंट, नियोनेटोलॉजी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने समय पर इस चुनौतीपूर्ण मामले में मेडिकल सहायता प्रदान कर कन्या शिशु का प्रसव कराया।इस प्रीमैच्योर शिशु की मां झांसी शहर से थीं।
जब बेहद नाजुक स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया तब मां और भ्रूण को इंफेक्शन के साथ-साथ प्रीमैच्योर डिलीवरी का भी जोखिम था। पैरेन्ट्स इस मामले में सुरक्षित नतीजे चाहते थे और अस्पताल में विस्तृत नियोनेटल काउंसलिंग के बाद, वे सी-सेक्शन डिलीवरी के लिए तैयार हो गए क्योंकि इस मामले में ट्विन प्रेग्नेंसी के अत्यधिक प्रीमैच्योर होने और समय पूर्व ही रिसाव शुरू होने के कारण भ्रूणों को भी इंफेक्शन का खतरा था।इस मामले की पूरी जानकारी देते हुए, डॉ आराधना सिंह, एडिशनल डायरेक्टर, ऑब्सटैट्रिक्स एवं गाइनीकोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने बताया,
”ऑब्सटेट्रिशियंस के लिए डिलीवरी (प्रसव) का समय बेहद महत्वपूर्ण और नाजुक होता है क्योंकि उन्हें अजन्मे और प्रीटर्म शिशु से जुड़े जोखिमों को ध्यान में रखना होता है और साथ ही, मां की सेहत को भी संभालना होता है। नियोनेटोलॉजिस्ट्स के लिए, इस प्रकार के प्रीटर्म गेस्टेशन के मामलों में, किसी भी तरह की मॉर्बिडिटी और मॉर्टेलिटी बेहद चिंता का विषय होती है। इस वजह से ही फैसला लेने की प्रक्रिया काफी मुश्किल थी। लेकिन सही उपचार से हम मां और शिशु दोनों को बचाने में सफल रहे। एलएससीएस में जुड़वां शिशुओं का प्रसव कराया गया लेकिन उनमें से एक शिशु को बचाया नहीं जा सका जबकि दूसरे शिशु का जन्म भी प्रीमैच्योरिटी (इंट्रा-यूटराइन इंफेक्शन) के चलते 12 घंटे बाद हो गया।” डॉ संजीव छेत्री, सीनियर कंसल्टैंट, नियोनेटोलॉजी,
फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने कहा, ”यह प्रीमैच्योर डिलीवरी का मामला था और नवजात को अविकसित फेफड़ों, हृदय तथा आंत के चलते जन्म के समय ही सांस एवं हृदय संबंधी सपोर्ट की आवश्यकता थी। शिशु को तत्काल नियोनेटल इन्टेन्सिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में शिफ्ट किया गया और वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। कुछ ही घंटों बाद, शिशु की हालत बिगड़ने लगी थी और उसे हाइ फ्रीक्वेंसी वेंटिलेटर सपोर्ट ( जो कि नवजातों को प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च वेंटिलेटर सपोर्ट है) पर रखा गया। नवजात को जन्म के बाद पहले हफ्ते में स्थिर रखने के लिए ब्लड प्रेशर, एंटीबायोटिक्स सपोर्ट की आवश्यकता थी।
इसके अलावा, नवजात को बार-बार दौरे भी पड़ रहे थे और इसे देखते हुए उसे एंटी-कॉन्वेलसेंट दिया गया। जब धीरे-धीरे नवजात की हालत में सुधार आने लगा तो तीन दिन बाद उसे वेंटिलेटर से हटा लिया गया।”