सिंदूर खेला का पारंपरिक और रंगारंग कार्यक्रम
Noida विजयादशमी के शुभ अवसर पर, नोएडा के दुर्गा पूजा पंडालों में बंगाली समुदाय की महिलाओं द्वारा सिंदूर खेला का पारंपरिक और रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस उत्सव के बाद, ढोल-नगाड़ों और जयकारों के बीच, भक्तों ने मां दुर्गा को भावभीनी विदाई दीऔर उनकी प्रतिमा को विसर्जित किया। यह उत्सव, जो बंगाली संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है,होली की तरह उल्लासपूर्ण और रंग-बिरंगा होता है, लेकिन रंगों की जगह इसमें सिंदूर का प्रयोगकिया जाता है।
सिंदूर खेला: आस्था और सामुदायिक सौहार्द का प्रतीकसिंदूर खेला की परंपरा के अनुसार, बंगाली समुदाय की विवाहित महिलाओं ने पारंपरिक लाल साड़ियाँपहनकर यह उत्सव मनाया। इस दौरान महिलाओं ने सबसे पहले मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित किया।इसके पश्चात, उन्होंने आपस में एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य कीकामना की। यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामुदायिक सौहार्द और उत्साह को भीप्रगाढ़ बनाती है।
मां की विदाई की भावुक रस्म
सिंदूर खेला के बाद मां दुर्गा को विदाई देने की रस्म भी अत्यंत भावुक होती है।सिंदूर लेपन: मान्यता है कि नवरात्रि में मायके आई माँ दुर्गा दशमी तिथि पर अपने ससुराल वापसजाती हैं। इसलिए सबसे पहले उनके माथे पर सिंदूर लगाया जाता है।आंसू पोंछने का रिवाज: महिलाएं अपनी हथेलियों में पान का पत्ता लेकर उसे देवी के चेहरे से लगातीहैं।
यह रिवाज़ प्रतीकात्मक रूप से माँ के चेहरे से आँसू पोंछने को दर्शाता है, जिसके बाद देवी कोविदाई दी जाती है।
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