दिल्ली और नोएडा के बीच सड़कों पर traffic एक बड़ी परेशानी
राजधानी दिल्ली और नोएडा के बीच रोजाना लाखों लोग सफर करते हैं। ऐसे में दिल्ली और नोएडा के बीच सड़कों पर traffic एक बड़ी परेशानी बन चुका है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पहले से ज्यादा गाड़ियां सड़क पर चल रही हैं, खासकर चिल्ला बॉर्डर से महामाया फ्लाईओवर तक के 5 किलोमीटर के रास्ते पर बहुत जाम लगता है। लेकिन दिल्लीवालों को अभी तीन साल तक इस traffic से राहत नहीं मिलने वाली। अधिकारियों को इस समस्या का 10 साल पहले ही पता चल गया था और उन्होंने एक समाधान भी निकाला था। लेकिन उस समाधान को लागू करने में कम से कम 3 साल लगेंगे।
जानकारी के अनुसार, साल 2012 में नोएडा अथॉरिटी ने एक उपाय सुझाया था। उन्होंने शाहदरा नाले के किनारे 5.5 किलोमीटर लंबा और 6 लेन का फ्लाईवे बनाने की योजना बनाई ताकि traffic की समस्या से निजात मिल सके। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए चिल्ला एलिवेटेड रोड का निर्माण जरूरी है, जिससे मयूर विहार-महामाया के traffic से बचा जा सकेगा।
एलिवेटेड रोड पर नोएडा के अलग-अलग हिस्सों से आने-जाने के लिए अलग से एंट्री और एग्जिट पॉइंट बनाए जाएंगे। लेकिन इस प्रोजेक्ट को बनाने में कम से कम तीन साल लग जाएंगे। ऐसे में अगर इसी साल फ्लाईवे का निर्माण शुरू हो जाए, तो उम्मीद है कि 2027 तक यह रोड बनकर तैयार हो जाएगा। हालांकि अभी तक ये साफ नहीं हो पाया है कि इसका निर्माण कब शुरू होगा।
भले ही इस प्रोजेक्ट की योजना 2012 में बना ली गई थी, लेकिन कई चुनौतियों की वजह से इसें मंजूरी मिलने में देरी हुई। फ्लाईवे की मंजूरी की प्रक्रिया में ही छह साल लग गए। इसकी शुरुआत 2013 में ही ग्राउंड पर स्टडी से हुई। लेकिन इस प्रोजेक्ट को दिल्ली सरकार के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग से मंजूरी दिसंबर 2018 को मिली। इसके अलावा दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के अंतर्गत आने वाले एजेंसी यूनिफाइड traffic एंड ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर (प्लानिंग एंड इंजीनियरिंग) सेंटर से 14 दिसंबर 2018 को मिली।
6 साल में प्रोजेक्ट को दिल्ली सरकार से अनुमति मिली, लेकिन फिर इस प्रोजेक्ट के आगे कोरोना महामारी आ गई। कोरोना के दौरान लगे लॉकडाउन की वजह से ये प्रोजेक्ट रुक गया। इस प्रोजेक्ट को बनाने का ठेका यूपी की ब्रिज कॉर्पेशन लिमिटेड को दिया गया था। कुल लागत 605 करोड़ रुपये थी जिसे नोएडा प्राधिकरण और लोक निर्माण विभाग (PWD) आपस में बांटने वाले थे। 25 जनवरी 2019 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसकी आधारशिला रखी थी। काम शुरू हुआ भी था, लेकिन मार्च 2020 में लॉकडाउन के कारण रुक गया।
लॉकडाउन में कुछ ढील मिलने के बाद थोड़े दिनों के लिए काम फिर से शुरू हुआ, लेकिन जल्द ही रुक गया क्योंकि लोक निर्माण विभाग ने इसके लिए फंड जारी नहीं किया। सितंबर 2021 में नोएडा बोर्ड की बैठक में विभाग से पैसा लेने के निर्देश दिए गए, लेकिन पैसा फिर भी नहीं आया। इस बीच एक और समस्या सामने आई कि 605 करोड़ रुपये का शुरुआती अनुमान अब पुराना हो चुका था। सड़क बनाने वाली कंपनी ने बताया कि इसकी लागत बढ़कर 1,076 करोड़ रुपये हो गई।
अप्रैल 2022 में ब्रिज कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने इस प्रोजेक्ट के लिए संशोधित अनुमान 1076 करोड़ रुपये रखा था। इस लागत में हुए इजाफे की वजह सड़क के किनारे CNG पाइपलाइन बिछाने की जरूरत थी। नोएडा अथॉरिटी ने संशोधित लागत को मंजूरी नहीं दी। इसके बाद, सितंबर 2022 में कंपनी ने कम लागत का अनुमान 912 करोड़ रुपये दिया। लागत बढ़ने का दूसरा कारण निर्माण सामग्री और मजदूरों की मजदूरी में इजाफा है, जो कोरोना वायरस महामारी के बाद से बढ़ी है।
नोएडा अथॉरिटी ने एक थर्ड पार्टी सलाहकार कंसलटेंट से लागत के बारे में पता करवाया, जिसने लागत को घटाकर 801 रुपये कर दिया।पहले जो प्रोजेक्ट तय हुआ था उसमें सड़क को ऊंचा उठाने के लिए सिर्फ एक-एक खंभे लगाए जाने थे। लेकिन अब सीएनजी पाइपलाइन के लिए जगह बनाने के लिए दो खंभों वाले पोर्टल फ्रेम ढांचे का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद राज्य सरकार ने जून 2023 में इस प्रोजेक्ट के लिए संशोधित बजट 787 करोड़ रुपये मंजूर कर दिया।
प्रोजेक्ट के लिए नई व्यवस्था यह है कि अब PWD का 50 फीसदी हिस्सा अब केंद्र सरकार के गति शक्ति फंड से आएगा और बाकी 50 फीसदी नोएडा अथॉरिटी देगा।
हालांकि, ब्रिज कॉर्पोरेशन को टेंडर जारी करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने पाया कि स्वीकृत बजट अपर्याप्त था और 940 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुरोध किया। यह 18% GST और 12.5% ठेकेदार के शुल्क के लिए था। इसके बाद नवंबर 2023 में 680 करोड़ रुपये की निर्माण लागत के साथ एक टेंडर जारी किया गया। टेंडर प्रक्रिया के बावजूद, लागत में बढ़ोतरी के कारण प्रोजेक्ट पर काम अभी तक शुरू नहीं हो सका है। छह कंपनियों ने बोलियां जमा कीं, लेकिन केवल दो ही योग्य थीं।
ये बोलियां डीआर अग्रवाल (828 करोड़ रुपये) और एलएंडटी (917 करोड़ रुपये) की थीं। बातचीत विफल रही जिसके कारण 28 फरवरी को एक नया टेंडर जारी किया गया। बोलियां जमा करने की आखिरी तारीख 30 मार्च है और तकनीकी बोलियां 2 अप्रैल को खोली जाएंगी।
अगर कोई उपयुक्त बोलीदाता मिल जाता है, तो उसके पास प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए तीन साल होंगे और वह पांच साल तक इसके रखरखाव के लिए जिम्मेदार होगा।