संत शिरोमणि और दिगंबर जैन धर्म के सबसे बड़े संत आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़
स्थित चंद्रगिरि तीर्थ में शनिवार (17.02.2024) उत्तम सत्य धर्म के दिन देर रात 2:35 बजे अपना शरीर त्याग दिया । वह 77 वर्ष के थे।आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने 3 दिन पहले ही समाधि मरण की प्रक्रिया को शुरू कर पूर्ण रूप से अन्न-जल का त्याग कर दिया था और अखंड मौन व्रत ले लिया था। आचार्यश्री काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके शरीर त्यागने का पता चलते ही जैन समाज के लोगों का जुटना शुरू हो गया।
श्री चंद्रगिरि तीर्थ, डोंगरगढ़ में समाधिष्ठ परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का अंतिम डोला रविवार को दोपहर 1 बजे निकाला गया और उनकी देह अग्नि संस्कार के माध्यम से पंचतत्व में विलीन हो गई।
भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में रखा गया एक मिनट का मौन:
रविवार को भारत मंडपम में आयोजित भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने ली समाधि, जी के देवलोक गमन पर एक मिनिट का मोन रखकर नमन किया गया। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ जी सहित सम्पूर्ण केबिनेट,पार्टी पदाधिकारी,पार्टी के हजारों कार्यकर्ता लोग उपस्थित थे।
पीएम मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत जैन मुनि विद्यासागर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए की. पीएम मोदी ने कहा, ‘यह मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति की तरह है. मैं उनसे कई वर्षों में कई बार मिला. अभी कुछ महीने पहले, मैंने अपने दौरे का कार्यक्रम बदला और सुबह-सुबह उनसे मिलने पहुंच गया… तब नहीं पता था कि मैं कभी नहीं देख पाऊंगा…उन्हें दोबारा नहीं देख पाऊंगा.
आज मैं समस्त देशवासियों की तरफ से संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 पूज्य विद्यासागर जी महाराज को श्रद्धापूर्वक और आदरपूर्वक नमन करते हुए श्रद्धाजंलि देता हूं’. यह कहते हुए प्रधानमंत्री का गला रुंध गया, वह भावुक हो गए और कुछ देर के लिए अपना संबोधन रोक दिया. ‘वर्तमान के महावीर’ कहलाने वाले आचार्य श्री से पिछले साल 5 नवंबर को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विधानसभा चुनावों से पहले डोंगरगढ़ पहुंच कर आशीर्वाद लिया था जिसकी तस्वीरें उन्होंने सोशल मीडिया पर साझा की थीं।
प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के लिए बहुत श्रद्धा रखते थे और समय समय पर उनके दर्शनों के लिए जाते रहते थे. केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने विद्यासागर महाराज को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘महान संत परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जैसे महापुरुष का ब्रह्मलीन होना, देश और समाज के लिए अपूरणीय क्षति है.
जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक सिर्फ मानवता के कल्याण को प्राथमिकता दी. मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि ऐसे युगमनीषी का मुझे सान्निध्य, स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा. मानवता के सच्चे उपासक आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जाना मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है. वे सृष्टि के हित और हर व्यक्ति के कल्याण के अपने संकल्प के प्रति निःस्वार्थ भाव से संकल्पित रहे.’
अतुल जैन, एडवोकेट दिल्ली हाई कोर्ट तरफ से संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 पूज्य विद्यासागर जी महाराज को श्रद्धापूर्वक और आदरपूर्वक नमन करते हुए श्रद्धाजंलि दी
आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। 22 वर्ष की आयु में उन्होंने आचार्य श्री ज्ञानसागर से राजस्थान के अजमेर में दीक्षा ली और मुनि बन गए। जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की माता नाम श्रीमति और पिता का नाम मल्लपा था। उनके माता-पिता ने भी उनसे ही दिक्षा लेकर समाधि प्राप्त की थी। आचार्य विद्यासागर महराज के तीन भाई और दो बहन स्वर्णा और सुवर्णा ने भी उनसे ही ब्रह्मचर्य लिया था। विद्यासागर जी महाराज पूरे भारत के संभवत: ऐसे अकेले आचार्य रहे, जिनका पूरा परिवार संन्यास ले चुका है।
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़उन्होंने 500 से अधिक मुनियों और 1000 से अधिक आर्यिकाओं को दीक्षा दी । आचार्यश्री ने शिक्षा, सामाजिक सुधार और धर्म प्रचार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया।
आचार्यश्री ने 50 से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें ‘मुक्ति का मार्ग’, ‘जीवन दर्शन’, और ‘आत्मज्ञान’ शामिल हैं। आचार्य श्री ने आम जनता के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने गरीबों से लेकर जेल के बंदियों के लिए भी काम किया। लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए अपने प्रयासों के लिए भी वह हमेशा याद किए जाएंगे। उन्होंने हिंदी और संस्कृत में अनेक ग्रंथों की रचना की। पूरे बुंदेलखंड में आचार्यश्री विद्यासागर महराज छोटे बाबा के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उन्होंने मध्य प्रदेश के दमोह जिले में स्थित कुंडलपुर में बड़े बाबा आदिनाथ भगवान की मूर्ति को मंदिर में रखवाया था।
महाराज जी ने त्याग की हुई थी लगभग सभी वस्तुएँ:
जिस व्यक्ति ने अपने वस्त्र ही त्याग दिए हों, इस से बड़ा त्याग तो और कोई हो ही नही सकता। आचार्य श्री ने आजीवन चीनी, नमक, चटाई, हरी सब्जी, फल, दही, सूखा मेवा, तेल, अंग्रेजी औषधि, इत्यादि का त्याग किया हुआ था। आचार्यश्री दिन भर में सिर्फ एक बार एक अंजुली पानी पीते थे। इसके अलावा उन्होंने थूकने का भी त्याग रखा। एक करवट में शयन, बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तख्त पर किसी भी मौसम में सोना उनकी तपस्या के अंग थे।
जो त्याग जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने किए थे, वे न केवल जैन धर्म अपितु सम्पूर्ण मानव इतिहास में अद्वितीय थे। आचार्यश्री न केवल जैन समाज बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लोगों द्वारा पूजे जाते थे। समय-समय पर देश-विदेश के बड़े-बड़े नेता और राजनेता उनके दर्शन करने को जाते रहते थे। देश भर से गणमान्य व्यक्तियों ने आचार्यश्री के देह त्याग पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं।
हम सभी को आचार्यश्री द्वारा दिखाए गए मार्ग के अनुसरण करने का प्रयास करना चाहिए।
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